Saturday 14 March 2009

मिथिला समाद मिथि-देश केर विहान थिक -दयाकान्त झा

मानवीय अस्तित्व केर अहम् प्रश्न ? उत्तरित ,
गहन अन्धकार पर विजय- ध्वज महान थिक।
कोटि-कोटि भानु थिक, ज्योति-पुंज चान थिक ,
'मिथिला समाद ' मिथि-देश केर विहान थिक ॥
पवित्र प्रेम-उक्ति सं, सुखद सनेह दृष्टि सं ,
चिर-प्रतीक्षितक अनवरण सफल प्रमाण थिक,
लोक सबहक प्राण थिक, समस्त अनुष्ठान थिक,
'मिथिला समाद ' मिथि-देश केर विहान थिक ॥
आदि अंतहीन पथ प्रशस्त हो विराट सन,
प्रयास हो सदा विनम्र , मृदुल शान्ति गान थिक।
भगवती मान थिक , अर्चना विधान थिक,
'मिथिला समाद ' मिथि-देश केर विहान थिक ॥
समस्त विकृतिक विनाश करत चारू कृत्या सं,
स्वतंत्रताक रक्षणार्थ मुक्त सदकृपाण थिक।
अभीष्ट पूर्ण हो सदा-तकर विशेष ज्ञान थिक,
'मिथिला समाद ' मिथि-देश केर विहान थिक ॥
समाज निर्मलीकरण एकर यथार्थ काज हो,
मानवीय चित्त वृत्ति पर शिष्ट राज हो।
अखिल विश्व वैभवक शान थिक, गुमान थिक,
'मिथिला समाद ' मिथि-देश केर विहान थिक ॥

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