Sunday 1 March 2009

सम्पादकीय-1

भरोस नहि छल

भरोस नहि छल जे "मिथिला समाद" निरंतर छह मास प्रकाशित भ" सकत। जखन लोकार्पण अंक निकालने छलहुँ त" दैनिक हिंदुस्तानक एकटा बंधु वरिष्ठ पत्रकार बधाई दैत कएकटा प्रश्न कयने छलाह आ अन्तिम प्रश्न छलनि जे पहिने जे दू बेर दैनिक निकलल गेल छलैक, से किएक बंद भेलैक। हम कहने रहियनि कोनो जानकारी नहि अछि। हमरा वास्तव मे जानकारी नहि छल आ जं से रहैत त" किन्नहुं ने दैनिक निकालबाक (मैथिली मे ) प्रयास करितहुं । कारण पता त" एहि छह मास मे लागल। हमरा जीवनक अधिकांश कार्यक्षेत्र बंगाल रहल। बंगाल मे बांग्लाभाषाक प्रति बंगालीक स्नेह अपन आराध्य देवो सं बेसी छैक। एकरा सब कें एहि बातक गौरव छैक ( इर्ष्या नहि ) जे एकरा भाषा मे लिखल पोथी कें नोबेल पुरस्कार भेटलैक । एहि ठाम जे व्यक्ति बंगला बजैत छथि ओ बंगाली छथि। भाषाक गौरव सं बंगालक एहि धरती पर रहि सोचैत छलहुँ जे मिथिलोक त' सर्वनिम्न स्तर सं ल' आभिजात्य वर्ग धरि सब क्यो मैथिली बजैत छथि मुदा आभिजात्य छोडि आन क्यो ई कहाँ बुझैत अछि जे हम जे बजैत छी से मैथिली थीक। भाषा संगे मिथिलाक जनसाधारण मे ओहि तरहक स्नेहो नहि छैक। ई बात मैथिली आन्दोलन मे ओकर निरपेक्षता सं स्पष्ट भ' जाइछ। दोसर बात एखन समाचार माध्यमक लेल बिहार क्रीडा स्थल भ' गेल अछि आ कतेको हिन्दी पत्र अपन स्वरुप जिला स्तरीय आ अनुमंडलीय स्तरीय बना लेने अछि। मिथिला क्षेत्र में सेहो यैह रणनीति अपना ओ मैथिली कें समाप्त करबा दिस छद्म रूपें लागल अछि जकरा रोकबा दिस ने ककरो नजरि छैक आ ने ज्ञान। तेसर एखन धरि मैथिली सं जिनका लगाव छनि ताहि मे अधिकांश कोनो ने कोनो रूपें लाभार्थी छथि यैह सब देखि सुनि मोन कचोटैत छल। जनसाधारण मैथिली कें अपन भाषा बुझि से ध्यान मे राखि ई प्रयास शुरू कयल एहि कार्य मे प्रकाशन सं पूर्व अत्यधिक सामाजिक सहयोगक आश्वासन भेटल । आ सबहक सहयोगक आशा सं मिथिला समादक प्रकाशन शुरू भेल । शुरू होइते सामाजिक अश्वासनक सीधी खिंच लेल गेल । उद्देश्य छलनि जे बड्ड काबिल बनलहुं अछि, देखि लिय" । किछु व्यक्ति आ संस्था त" सीधासम्मर बान्हि क" एकरा बंद करेबा लेल कटिबद्ध भ" गेल । कर्मचारी मे फूट मालिक-कार्यकर्ता मे दरारि दियाबक आप्राणप्रयास कयल गेल आ ई कहबा मे कनेको संकोच नहि भ" रहल अछि जे जं मालिक मिथिला क्षेत्रीय रहितथि त" पत्र कहिया ने बंद भ" रहैत । ई सब कुचक्र, कुचालि, एखनो चलि रहल अछि आ ईहो जनैत छी जे मैथिलक सामान्य स्वाभावक अनुरूप चलिते रहत । पटनाक किछु तथाकथित साहित्यकार त" जेना मैथिली कें अपन बपौती मानैत छथि, जाहि मे अनकर प्रवेश वर्जित अछि । ओ मिथिला समाद द" अनर्गल बात लिखि प्रचारित करैत रहलाह। मुदा मिथिला समाद परिवार जखन मैथिली सेवा दिस एक बेर डेग बढ़ा देलक, ई अपना कर्तव्य पथ पर अटल छल। आलोचना, अभिघात, आभिजात्य उपेक्षा, तिरस्कार आदि पर ध्यान देने बिना आगू बढैत गेल । भगवतीक कृपा आ पाठकक भरोस पर छह मासक अग्निपरीक्षा पूर्ण भेल । एहि बीच बहुत तरहक अनुभव भेल आ जे आगूक यात्रा मे पाथेयक काज करत । पाठकक संबल ल" मिथिला समाद आगू बढैत रहत आ सभ तरहक झंझावातक मोकाबिला करैत रहत, विश्वास अछि । विभिन्न प्रशासकीय बाधक कारणे एखन धरि मिथिला समाद बिहार नहि पहुँचि सकल छल । मार्चक प्रथम सप्ताह सं मिथिलाक माटि कें स्पर्श करबाक आशा अछि आ विश्वास अछि , जाति-वर्ग-धर्म निर्विशेष मिथिलाक जनसाधारणक समर्थन एकरा प्राप्त हेतैक । (कोलकाता , रविदिन, ०१ मार्च, २००९)

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